शनिवार, 11 दिसंबर 2010

पद्म विभूषण पं. हरिप्रसाद चौरसिया को संगीत रत्न अवार्ड


महान विभूतियों को संगीत रत्न अवार्ड

नई दिल्ली 2 दिसम्बर 2010 : राजधानी के एक सभागार में बृहस्पतिवार को आयोजित एक संगीतमयी शाम में कला और संगीत की उन विभूतियों को सम्मानित किया गया जिनकी मौजूदगी से कला व संगीत का क्षेत्र खुद को सम्मानित महसूस करता है। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय माकन ने पद्म विभूषण बांसुरी वादक पं. हरिप्रसाद चौरसिया और पद्म भूषण कथक नृत्यांगना उमा शर्मा को भारत के संगीत रत्न अवार्ड से सम्मानित करते हुए कहा कि यह मौका पाकर वह ख़ुद को बेहद सम्मानित महसूस कर रहे है। इंडिया हैबीटेट सेंटर में दि आर्ट एंड कल्चरल ट्रस्ट आफ इंडिया द्वारा आयोजित संगीत सम्मान अवार्डस-2010 का शुभारंभ मुख्य अतिथि गृह राज्य मंत्री अजय माकन ने दीप प्रज्वलित करके किया। इस मौके पर उनके साथ ट्रस्ट के संस्थापक अध्यक्ष ठा. चक्रपाणि सिंह, अध्यक्ष ललित भसीन, सचिव परमजीत कौर, और डा. रचना आशा भी मंच पर मौजूद थे। मुम्बई के कवि-उदघोषक देवमणि पाण्डेय  ने कार्यक्रम का संचालन किया।


इस संगीतमयी शाम का शुभारंभ पांच वर्षीय ऊर्जा अक्षरा ने सरस्वती वंदना से किया। मुख्य अतिथि श्री अजय माकन ने भोपाल के ध्रुपद गायक गुंडेचा ब्रदर्स प. उमाकांत एवं प. रमाकांत गुंडेचा को संगीतश्री सम्मान और प्रसिद्ध पखावज वादक प. डालचंद शर्मा को दिल्ली रत्न से सम्मानित किया। इसके अलावा लोक गायिका लक्ष्मी सिंह को भी सम्मानित किया गया। ट्रस्ट की ओर से संस्थापक अध्यक्ष ठा. चक्रपाणि सिंह ने मुख्य अतिथि अजय माकन को स्मृति चिह्न प्रदान किया। इस मौके पर अजय माकन ने कहा कि समाज निर्माण में कलाकारों की अहम भूमिका होती है। श्री माकन ने आर्ट एंड कल्चरल ट्रस्ट आफ इंडिया की स्मारिका का लोकार्पण भी किया। इस संगीतमयी शाम को उमा शर्मा ने अपने कथक नृत्य से सराबोर कर दिया।

ध्रुपद गायक गुंडेचा ब्रदर्स की शास्त्रीय गायकी ने खूब वाह-वाही बटोरी। अपने सम्मान का उत्तर देते हुए प. हरिप्रसाद चौरसिया ने कहा कि वह अब भी विद्यार्थी हैं और सीख रहे हैं। जैसा सम्मान उन्हें आज यहां मिला है, वह अद्भुत है। समारोह के संचालन के लिए ख़ास तौर से मुम्बई के कवि-उदघोषक देवमणि पाण्डेय को आमंत्रित किया गया था। उन्होंने साहित्यिक गरिमा के साथ मंच संचालन किया।



आपका

देवमणिपांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड,
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210-82126

मंगलवार, 23 नवंबर 2010

मुहब्बतों का पैग़ाम : हिंदुस्तान में सूफ़ीवाद

सूफ़ी अलबम 'कबीराना सूफ़ीयाना' के लोकार्पण समारोह में लखमेंद्र खुराना, गायक विवेक प्रकाश, संगीतकार ख़य्याम, सूफ़ी सिंगर कविता सेठ, कवि नारायण अग्रवाल, उदघोषक देवमणि पाण्डेय और टाइम्स म्यूज़िक के पूर्व सीईओ अरुण अरोड़ा। 

सूफी संत और वसुधैव कुटुम्बकम
सूफ़ी संतों और सूफ़ी शायरों ने पूरी दुनिया को मुहब्बत का पैग़ाम दिया। इन्होंने अपने रब के साथ ऐसा पाक और रुहानी रिश्ता जोड़ा कि उन्हें अपने दिल के आईने में पूरी दुनिया का अक्स नज़र आने लगा। सूफ़ी शायरी और सूफ़ी संगीत के ज़रिए दिल से दिल के तार जोड़ने का यह सिलसिला आज भी जारी है। सूफ़ीवाद का आग़ाज़ कहा जाता है कि आठ सौ साल पहले ईरान में इमाम ग़ज़ाली के ज़रिए सूफ़ीवाद का आग़ाज़ हुआ। वहाँ से तुर्की होते हुए इसकी ख़ुशबू हिंदुस्तान पहुंच गई। फ़ारसी शायर जलालुद्दीन रूमी और हाफ़िज़ शीराजी ने सूफ़ीवाद को अपने कलाम के ज़रिए दूर दूर पहुंचाया। आज भी लोग मौलाना रूमी से इतनी मुहब्बत करते हैं कि सन् 2007 को पूरी दुनिया में ‘इयर ऑफ दि रूमी’ के नाम से मनाया गया था। यह उनकी 800वीं बरसी थी। मौलाना मुहम्मद जलालुद्दीन रूमी का जन्म अफ़गानिस्तान के बल्ख में 30 सितम्बर 1207 को हुआ। रूमी ने अपना जीवन तुर्की में बिताया। 17 दिसम्बर 1273 को तुर्की के कोन्या में उनका इंतक़ाल हुआ। वे फ़ारसी के महत्वपूर्ण लेखक थे। शायर शम्स तबरीज़ी से मिलने के बाद रूमी की शायरी में मस्ताना रंग आया था। इनके काव्य संग्रह का नाम है दीवान ए शम्स। रूमी ने सूफ़ीवाद में दरवेश परंपरा को आगे बढ़ाया। रूमी की मज़ार पर सैकड़ों सालों से सालाना आयोजन होते रहे हैं। बारहवीं सदी में कई सूफ़ी फ़कीर हिंदुस्तान आए। ख्वाजा अब्दुल चिश्ती ने हेरात में 'चिश्ती धर्म संघ' की स्थापना की थी। सन् 1192 ई. में ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती हिंदुस्तान आए। उन्होंने यहाँ चिश्ती परम्परा की शुरुआत की। उनकी गतिविधियों का मुख्य केन्द्र अजमेर था। इन्हें ग़रीब नवाज़ कहा जाता है। प्रमुख सूफ़ी सन्तों में बाबा फ़रीद, ख्वाजा बख़्तियार काकी, शेख़ सलीम चिश्त एवं शेख़ बुरहानुद्दीन ग़रीब का नाम लिया जाता है। सुल्तान इल्तुतमिश के समकालीन ख्वाजा बख़्तियार काकी ने फ़रीद को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। बाबा फ़रीद का आम लोगों से बहुत लगाव था। उनकी अनेक रचनाएं 'गुरुग्रंथ साहिब' में शामिल हैं। बाबा फ़रीद को ग़यासुद्दीन बलबन का दामाद बताया जाता है।
मशहूर सूफ़ी संत हजरत निज़ामुद्दीन औलिया ने सात सुल्तानों का कार्यकाल देखा। मगर उन्होंने किसी सुल्तान की परवाह नहीं की। शेख़ निज़ामुद्दीन औलिया को महबूब-ए-इलाही कहा गया। हिंदुस्तान में निज़ामुद्दीन औलिया के शागिर्द अमीर ख़ुसरो के कलाम के ज़रिए सूफ़ीवाद ने अवाम के साथ अपना रिश्ता जोड़ लिया। ख़ुदा से मेल होने के बाद आदमी अपनी दुनियावी पहचान से आज़ाद होकर एक अलग ही दुनिया में पहुंच जाता है। अमीर ख़ुसरो लिखते हैं- छाप तिलक सब छीनी रे, मोसे नैना मिलाइ के... बुतख़ाने के परदे में काबा सूफ़ीवाद मुहब्बत के दयार में फ़कीर की तरह घूमने-फिरने की आज़ादी है। ऐसा माना जाता है कि क़तरे से लेकर समंदर तक, ज़र्रे से लेकर आसमान तक अल्लाह हर चीज़ में है। अगर अल्लाह हर चीज़ में है तो वह बुत में भी है। मशहूर शायर डॉ इक़बाल ने अपनी एक ग़ज़ल के ज़रिए सूफ़ीवाद को इस तरह परिभाषित किया है- बुत में भी तेरा या रब जलवा नज़र आता है बुतख़ाने के परदे में काबा नज़र आता है माशूक के रुतबे को महशर में कोई देखे अल्लाह भी मजनूँ को लैला नज़र आता है इक क़तरा-ए-मय जब से साक़ी ने पिलाई है उस रोज़ से हर क़तरा दरिया नज़र आता है साक़ी की मुहब्बत में दिल साफ़ हुआ इतना जब सर को झुकाता हूँ शीशा नज़र आता है दिल और कहीं ले चल ये दैरो-हरम छूटे इन दोनों मकानों में झगड़ा नज़र आता है अल्लाह को पाने के लिए जोगी बनना ज़रूरी नहीं है। घर-गृहस्थी में रहकर भी अल्लाह तक पहुँचा जा सकता है। बीवी से मुहब्बत है तो अल्लाह से भी प्रेम हो सकता है। सूफी संत नूर मुहम्मद फ़रमाते हैं- नूर मुहम्मद यह कथा, है तो प्रेम की बात जेहि मन कोई प्रेम रस, पढ़े सोई दिन रात


सूफ़ीवाद पर चर्चा करते हुए शायर देवमणि पाण्डेय, सूफी सिंगर कविता सेठ और कवि नारायण अग्रवाल

सूफ़ी होने का मक़सद

सूफ़ी लोग सूफ़ यानी ऊन का लबादा पहनते थे। सूफ़ी होने का मक़सद है फ़कीर होना। मुहब्बत, सादगी और इंसानियत ही इनका मज़हब है। धन-दौलत से इन्हें कुछ मतलब नहीं। सूफ़ी और संत पूरी दुनिया को अपना घर समझते हैं। सूफ़ियों ने मज़हब की पाबंदियों से बाहर निकलकर पूरी दुनिया की भलाई के लिए मुहब्बत और इंसानियत पर ज़ोर दिया। सूफ़ियों में दिलों को जोड़ने की भावना थी। उन्होंने किसी भी भेदभाव से ऊपर उठकर इंसान के दिलों को जोड़ने का काम हमेशा किया। सूफ़ियों की तरह हमारे देश के संत कवियों ने भी जात-पांत, धर्म और सम्प्रदाय से ऊपर उठकर, प्रेम के धागे से लोगों के दिलों को जोड़ने का काम बड़ी ख़ूबसूरती से किया। जो इंसान इस प्रेम को पा लेता है उसे किसी और चीज़ की ज़रुरत नहीं रह जाती। कबीर ने लिखा है- कबिरा प्याला प्रेम का, अंतर लिया लगाय रोम रोम में रमि रहा, और अमल कोउ नाय सूफ़ीवाद और संतवाणी का तसव्वुर एक ही है। दोनों मज़हब और धर्म में नहीं बंटे। यूनीवर्सल बने रहे। दोनों ने अपना रिश्ता अल्लाह से और ईश्वर से जोड़ा। पूरी दुनिया को अपना परिवार और सभी को एक जैसा माना। सूफ़ियों और संतों ने दुनिया के सभी इंसानों के लिए मुहब्बत का पैग़ाम दिया। उन्हें इंसानियत का रास्ता दिखाया। ख़ुदा से मुहब्बत यानी परमात्मा से आत्मा का मिलन ही इनकी ज़िंदगी और इनकी शायरी का मक़सद था। हिंदुस्तान में सूफ़ी काव्य परम्परा रामानंद के शिष्य कबीर को कुछ लोग सूफ़ी संत शेख़ तकी का शागिर्द बताते हैं। कबीर पर सूफ़ियों का काफ़ी असर दिखाई देता है- पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय हिंदुस्तान में मलिक मुहम्मद जायसी, कुतुबन, मंझन, नूर मुहम्मद आदि कई ऐसे रचनाकार हुए जिन्हें सूफ़ी परम्परा को आगे बढ़ाने वाला माना जाता है। जायसी ने पदमावत, अखरावट, और कान्हावत जैसे महाकाव्य लिखकर सूफ़ी साहित्य में इज़ाफ़ा किया। सूफ़ियाना आशिक़ में तड़प, क़सक और दर्द का होना ज़रूरी है। जायसी के पदमावत में इन भावनाओं की गहराई दिखाई देती है। इस प्रेम कथा में रानी पदमावती को परमात्मा और राजा रत्नसेन को आत्मा के रूप में पेश किया गया है। ख़ास बात यह है कि हिंदुस्तान के सूफ़ी कवियों और शायरों ने प्रेम काव्य लिखने के लिए सारे अफ़साने हिंदू मैथोलॉजी से लिए। सूफ़ी कवि यहाँ के जीवन, लोकाचार और लोक संस्कृति से भली भांति वाक़िफ़ थे। रानी नागमती के जुदाई के दर्द को सामने लाने के लिए जायसी ने बारहमासा लिखा जो लोक जीवन की झांकी का बेजोड़ नमूना है। पिय से कहेउ संदेसड़ा, हे भौंरा! हे काग! सों धनि बिरह जरि मुई, तेहिके धुँआ हम लाग सूफ़ीवाद की ख़ुशबू पंजाब की संतवाणी में भी नुमायां है। गुरुनानक, बुल्ले शाह, वारिस शाह और बाबा फ़रीद के सूफ़ी कलाम से मुहब्बतों की ऐसी बारिश हुई जिसमें समूचा हिंदुस्तान तरबतर हो गया। गुरुनानक ने दिलों को रोशन करने का काम किया। अव्वल अल्ला नूर उपाया, क़ुदरत ते सब बंदे एक नूर ते सब जग उपज्यां , कौन भले कौन मंदे शायरी की रिवायत में महबूब को ख़ुदा का दर्जा हासिल है। शायरी की ख़ूबसूरती इसी फ़न में है कि उसे इशारों में बयां किया जाए। यानी चाहे उसे ख़ुदा के लिए समझिए या महबूब के लिए। सच्चा सूफ़ी ख़ुशी में रक्स करता है और दुख में हँसता है। यानी जब वो ख़ुदा से अपना रिश्ता जोड़ लेता है तो उसके लिए ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ नहीं रह जाता। तसव्वुफ़ के इस सफ़र में पूरी दुनिया उसे अपना ही घर लगने लगती है। तब वह पूरी दुनिया को वसुधैव कुटुम्बकम का पाठ पढ़ाता है और लोगों के दिल और ज़ह़न को रोशन करके उन्हें इंसान होने का मतलब समझाता है। ये मसाइल-ए-तसव्वुफ़ ये तेरा बयान ग़ालिब तुझे हम वली समझते, जो न बादा-ख़्वार होता
आपका- देवमणि पाण्डेय सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाड़ा, गोकुलधाम, फ़िल्मसिटी रोड, गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063 M : 98210-82126

गुरुवार, 4 नवंबर 2010

गायक राजेंद्र नीना मेहता : जब आँचल रात का लहराए

(बाएं से-) समाजसेवी विनोद टिबड़ेवाला, उदघोषक देवमणि पाण्डेय, पत्रकार नंदकिशोर नौटियाल, सिंगर राजेंद्र नीना मेहता, कवयित्री माया गोविंद, कथाकार आर.के.पालीवाल और गुरु अरविंदजी
 राजेंद्र नीना मेहता को जीवंती कला सम्मान

मौसम बारिश का था। मगर चारों तरफ आग बरस रही थी। सन 1947 के अगस्त माह के आख़िरी दिन थे। देश को आज़ादी मिली। मगर आज़ादी की खुशियां बंटवारे की कोख़ से जन्मे दंगों की ट्रेजडी में तब्दील हो गईं। जलते मकानों, उजड़ी दुकानों और सड़क पर पानी की तरह बहते इंसानी ख़ून के ख़ौफ़नाक मंज़र ! इनसे तमाम माहौल में रुह को थर्रा देने वाली दहशत फैल गई थी। सन्नाटे को चीरता हुआ फ़ौज का एक ट्रक लाहौर में एक मकान के सामने रुका। धडधड़ाकर दस-बारह जवान नीचे कूदे। दरवाजे पर दस्तक दी। सामने एक ख़ौफ़ज़दा औरत और नौ साल का सहमा हुआ बच्चा खड़ा था। बच्चे का बाप कारोबार के सिलसिले में बाहर गया था। उन्हें हुक्म मिला- कोई भी एक संदूक उठा लो । हम तुम्हें कैंम्प तक छोड़ देंगे। फिर हमारी ज़िम्मेदारी ख़त्म। जवाब का इंतज़ार किए बिना झट से एक फ़ौजी ने कोने में रखा संदूक उठाया। पलक-झपकते मां-बेटे को ट्रक में चढ़ाया और डीएवी कालेज के मुहाजिर कैम्प में लाकर डाल दिया। बीस दिनों के बाद बिछड़ा हुआ बाप आकर अपने बेटे से मिला। मुसीबतों का दरिया पार करने के बाद जब ये परिवार हिंदुस्तान की सरहद में दाख़िल हुआ तो संदूक खोला गया। उस संदूक में एक हारमोनियम था। कई शहरों की ख़ाक छानने के बाद आख़िरकार वो बच्चा उस हारमोनियम के साथ आर्ट और फ़न की नगरी मुंबई पहुंचा। मुंबई ने उसे और उसने मुंबई को अपना लिया। आज उस बच्चे को लोग ग़ज़ल सिंगर राजेंद्र मेहता के नाम से जानते हैं। 

शनिवार 30 अक्टूबर 2010 को भवंस कल्चर सेंटर अंधेरी (मुम्बई) में जाने माने ग़ज़ल सिंगर राजेंद्र-नीना मेहता को जीवंती फाउंडेशन की ओर से जीवंती कला सम्मान से विभूषित किया गया। वरिष्ठ पत्रकार नंदकिशोर नौटियाल, प्रतिष्ठित कथाकार-आयकर आयुक्त आर.के.पालीवाल,समाजसेवी विनोद टिबड़ेवाला और संस्थाध्यक्ष कवयित्री माया गोविंद ने उन्हें यह सम्मान भेंट किया। कवि देवमणि पाण्डेय ने राजेंद्र मेहता से उनके फ़न और शख़्सियत के बारे में चर्चा की। राजेंद्र मेहता ने अपनी ग़ज़लों की अदायगी से श्रोताओं को अभिभूत कर दिया। श्रोताओं की माँग पर उन्होंने अपना लोकप्रिय नग़मा भी पेश किया-

जब आंचल रात का लहराए और सारा आलम सो जाए 
तुम मुझसे मिलने शमा जलाकर ताजमहल में आ जाना

ग़ज़ल के मंच की पहली जोड़ी 

वर्ष था 1963 और तारीख थी 5 अगस्त। आकाशवाणी मुंबई में जमालसेन के म्यूज़िकल ड्रामा ‘मीरा’ की रिकार्डिंग थी। राजेंद्र ने राणा के लिए और नीना ने मीरा के लिए अपना स्वर दिया। राजेंद्र का असरदार गायन सुनकर नीना के दिल के तार झंकृत हो उठे। राजेंद्र की पलकों पर भी ख़्वाब रोशन हो गए।उस ज़माने में इंटरकास्ट मैरिज आसान नहीं थी। राजेंद्र ने यह भी कहा था- हम छुपकर या घर से भागकर शादी नहीं करेंगे। हम तुम्हारे मां-बाप की रज़ामंदी से ही शादी करेंगे। नीना जी के मां-बाप का रुख़ इस मामले में काफी सख़्त था। तीन साल के कड़े इम्तहान के बाद अक्तूबर 1966 में दोनों की मंगनी हुई और जनवरी 1967 में नीना और राजेंद्र मेहता विवाह सूत्र में बंध गए। 

सन् 1967 में ‘सुरसिंगार संसद’ के प्रोग्राम में राजेंद्र और नीना ने एक साथ मिलकर ग़ज़ल गाई। यानी ग़ज़ल के मंच की पहली जोड़ी के रूप में सामने आए और दोनों ने और शोहरत के आसमान पर अपनी कामयाबी का परचम लहरा दिया। ग़ज़ल का रवायती मानी ‘औरत से बातचीत’ लिया जाता है। अगर औरत ग़ज़ल गएगी तो वह किससे बात करेगी ? इस मुद्दे पर अख़बारों में बहस छिड़ गई। बहरहाल मेल और फीमेल को एक साथ ग़ज़ल गाते देखकर संगीत प्रेमी सामयीन हैरत में पड़ गए। मगर इस तरह ग़ज़ल गायिकी में एक नया ट्रेंड कायम हो चुका था। दो साल बाद जब चित्रा और जगजीत सिंह साथ-साथ मंच पर आए तो इस ट्रेंड को पसंद करने वालों की तादाद बुलंदी पर पहुँच चुकी थी।

राजेंद्र मेहता के साथ में हैं श्रीधर चारी (तबला), उदघोषक देवमणि पाण्डेय और सुनीलकांत गुप्ता (बाँसुरी)
फेमिली बैक ग्राउंड

वक़्त भी क्या दिन दिखाता है। राजेंद्र मेहता के बाबा लाहौर के बाइज़्ज़त ज़मींदार थे। पिता की अच्छी-ख़ासी चाय की कंपनी थी। सरकार की तरफ़ से नाना ने पहली जंगे-अज़ीम में और मामा ने दूसरी जंगे-अज़ीम में हिस्सा लिया था। मगर राजेंद्र मेहता को लखनऊ में ख़ुद को गुरबत से बचाने के लिए एक होटल में पर्ची काटने की नौकरी करनी पड़ी। उस समय वे नवीं जमात के तालिबे-इल्म थे। पढ़ाई के साथ नौकरी का यह सिलसिला बारहवीं जमात तक चला। इंटरमीडिएट पास करने पर उन्हें ‘बांबे म्युचुअल इश्योरेंस कंपनी’ में नौकरी मिल गई। 1957 में उन्होंने बीए पास कर लिया। राजेंद्र मेहता की मां को गाने का शौक़ था। बचपन में ही उन्होंने मां से गाना सीखना शुरु कर दिया था। लखनऊ में पुरुषोत्तमदास जलोटा के गुरुभाई भूषण मेहता उनके पड़ोसी थे। उनको सुनकर फिर से गाने के शौक़ ने सिर उठाया। बाक्स में रखा हुआ हारमोनियम बाहर निकल आया। राजेंद्र मेहता ने उर्दू की भी पढ़ाई की। शायर मजाज़ लखनवी और गायिका बेग़म अख़्तर की भी सोहबतें मिलीं। 1960 में उनका तबादला मुंबई हो गया।

ग़ालिब से गुलज़ार तक 

मुंबई आने से पहले ही राजेंद्र मेहता आकाशवाणी कलाकार बन चुके थे। लखनऊ यूनीवर्सिटी के संगीत मुक़ाबले का ख़िताब जीत चुके थे। कुंदनलाल सहगल की याद में मुम्बई में हुए संगीत मुक़ाबले में राजेंद्र मेहता ने अव्वल मुक़ाम हासिल किया। मरहूम पी.एम.मोरारजी देसाई के हाथों वे ‘मिस्टर गोल्डन वायस ऑफ इंडिया’ अवार्ड से नवाज़े गए। मार्च 1962 में ‘सुर सिंगार संसद’ ने सुगम संगीत को पहली बार अपने प्रोग्राम में शामिल किया। उसमें गाने से पहचान और पुख़्ता हुई। मशहूर संगीत कंपनी एचएमवी ने ‘स्टार्स आफ टुमारो’ के तहत 1963 में राजेंद्र मेहता का पहला रिकार्ड जारी किया। 1965 में जगजीत सिंह से दोस्ती हुई। 1968 में दोनों ने मिलकर करीब बीस शायरों की ग़ज़लें चुनकर ‘ग़ालिब से गुलज़ार तक’ लाजवाब प्रोग्राम पेश किया। इस मौक़े पर उस्ताद अमीर खां, जयदेव, ख़य्याम और सज्जाद हुसैन जैसे कई नामी कलाकर बतौर मेहमान तशरीफ़ लाए थे। इस नए तजुर्बे ने संगीत जगत में धूम मचा दी।

मेंहदी हसन का पब्लिक शो 

जब राजेंद्र और नीना मेहता ग़ज़ल की दुनिया में आए, उस समय ग़ज़ल गायिकी में पैसा नहीं था। मगर 1978 में अचानक एक करिश्मा हुआ और सारा मंज़र बदल गया। पाकिस्तानी दूतावास की ओर से 1978 में ‘इक़बाल दिवस’ के सिलसिले में मेंहदी हसन मुंबई आए। उनकी प्रेस कांफ्रेंस में लता मंगेशकर, नौशाद और दिलीप कुमार जैसी हस्तियां मौजूद थीं। बिरला मातुश्री सभागार में मेंहदी हसन का पब्लिक शो हुआ। पांच सौ रुपए के टिकट थे मगर सभागार में एक भी सीट ख़ाली नहीं थी। षड़मुखानंद हाल में भी यही आलम रहा। देश के कुछ और शहरों में भी ग़ज़ल के शो हुए और देखते ही देखते मेंहदी हसन ने टिकट ख़रीदकर ग़ज़ल सुनने वाला एक क्लास खड़ा कर दिया। इस बदलते माहौल में ग़ज़ल गायकों को पैसा मिलने लगा। सिर्फ़ गायिकी से रोज़ी-रोटी चलने की उम्मीद बंध गई। लोगों को लगा कि अगर ‘किशोर कुमार नाइट’ हो सकती है तो ‘जगजीत सिंह नाइट’ भी हो सकती है। संगीत कंपनियों ने भी ग़ज़ल कार्यक्रम आयोजित करने शुरु कर दिए।

जब आंचल रात का लहराए 

राजेंद्र मेहता को शोहरत और दौलत की भूक कभी नहीं रही। वे हमेशा मध्यम रफ़्तार से चले। उनके चुनिंदा अलबम आए और मंच पर भी उनके चुनिंदा प्रोग्राम हुए। ग़ज़लों को पेश करने के अपने बेमिसाल अंदाज़ से उन्होंने अपना एक ख़ास तबक़ा तैयार किया। उनकी ग़ज़लों में प्रेम की सतरंगी धनक के साथ ही समाज और सियासत के काले धब्बे भी नज़र आते हैं। मरहूम शायर प्रेमबार बर्टनी के मुहब्बत भरे एक नग़मे ‘जब आंचल रात का लहराए' को दिल को छू लेने वाले अंदाज़ में पेश करके राजेंद्र और नीना मेहता ने हमेशा के लिए ग़ज़लप्रेमियों के दिलों पर अपना नाम लिख दिया। संगीत के मंच पर राजेंद्र और नीना मेहता की जोड़ी को 44 साल हो चुके हैं। अपने अब तक के सफ़र से बेहद ख़ुश है। वे कहते हैं-ऊपरवाले ने हमें इतना कुछ दिया जिसके हम बिलकुल हक़दार नहीं थे। अक्सर राजेंद्र मेहता वे पंक्तियां सुनाते हैं जिसे उस्ताद अमीर खां सुनाया करते थे-

गुंचे ! तेरी क़िस्मत पे दिल हिलता है
सिर्फ़ इक तबस्सुम के लिए खिलता है
गुंचे ने कहा - बाबा ! ये इक तबस्सुम भी किसे मिलता है 

आपका
देवमणिपांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड,
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210-82126

रविवार, 31 अक्तूबर 2010

स्वानंद किरकिरे के साथ सिंगल स्क्रीन सिनेमा में ‘दबंग’

उज्जैन के शिप्रा होटल के गार्डेन में नेशनल अवार्ड से सम्मानित 'थ्री ईडिएट' फेम गीतकार स्वानंद किरकिरे,
मशहूर टीवी ऐंकर गायत्री शर्मा और शायर देवमणि पाण्डेय (12 सितम्बर 2010)

श्री मध्यभारत हिंदी समिति इंदौर में महात्मा गाँधी

श्री मध्यभारत हिंदी समिति, इंदौर के सभागार में महात्मा गाँधी की अदभुत युवा तस्वीर दिखाई पड़ी- बंद गले का कोट और शानदार पगड़ी। तस्वीर के नीचे अंकित है- काठियावाड़ी वेशभूषा में गाँधीजी। अगर यह इबारत न होती तो हम पहचान ही नहीं पाते कि यह गाँधीजी हैं। सौ साल पहले 1910 में ख़ुद गाँधीजी ने श्री मध्यभारत हिंदी समिति की स्थापना की थी।यहाँ से उन्होंने दक्षिण में हिंदी सिखाने के लिए दस हिंदीसेवियों का एक जत्था भी रवाना किया था। सोमवार 13 सितम्बर 2010 को शाम 6 बजे श्री मध्यभारत हिंदी समिति के सभागार में ईटीवी के सीईओ जगदीश चंद्रा, फ़िल्म थ्री ईडियट के गीतकार स्वानंद किरकिरे ,भड़ास फॉर मीडिया के सम्पादक यशवंत सिंह और मेरा सम्मान किया गया। 

जोश और उमंग से लबालब युवा उदघोषक अमित राठौड़ ने हमें कवितापाठ के लिए आमंत्रित किया। श्रोताओं की माँग पर स्वानंद ने फ़िल्म ‘हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी’ का गीत ‘बावरा मन’ ऐसा डूबकर गाया कि लोग भाव विभोर हो गए। मैंने ग़ज़लें सुनाईं। श्रोताओं में लेखकों-पत्रकारों की तादाद काफी थी। दूसरी ग़ज़ल पूरी होते ही पीछे से आवाज़ आई- 'कभी कभी' सुनाइए। मैंने यह ग़ज़ल भी सुना दी। मंच से नीचे उतरा तो वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश हिंदुस्तानी ने गर्मजोशी से हाथ मिलाया और कहा तीसरी गज़ल मुझे बहुत पसंद आई। सामने चार बुज़ुर्ग खड़े थे- हास्यव्यंग्य के वरिष्ठ कवि सरोज कुमार, वरिष्ठ गीतकार चंद्रसेन विराट, प्रतिष्ठित ग़ज़लकार चंद्रभान भारद्वाज और जाने-माने कथाकार शरद पगारे। इन बुज़ुर्गों ने अपने आशीर्वाद और स्नेह से ऐसा नहलाया कि आज भी तन-मन तरबतर है।
वेबदुनिया कार्यालय इंदौर में मराठी फीचर इंचार्ज स्मिता जोशी, हिन्दी फीचर इंचार्ज स्मृति जोशी, शायर देवमणि पांडेय, असिसटंट मैनेजर भीका शर्मा, उपसंपादक  शराफत खान, उपसंपादक रूपाली बर्वे, गुजराती फीचर इंचार्ज कल्याणी देशमुख

दोपहर को हमने इंदौर के मशहूर फ़िल्म वितरक आर.डी. जैन के यहाँ आदिवासी भोजन किया। केले के पत्ती की सब्जी और पके छिलकेदार केले की मसालेदार भाजी साथ में दाल बाटी। अदभुत स्वाद। जब हम 11 सितम्बर को इंदौर पहुँचे थे तो यही जैन साहब हमें और स्वानंद किरकिरे को एयरपोर्ट से सीधे ओल्ड पलासिया ले गए था। हमने विजय चाट हाउस में आलू चाट और मधुरम में मक्के की कचौरी खाई।अदभुत स्वाद ज़िंदगी का।क्या आपने कभी खाई। स्वानंद किरकिरे की फ़रमाइश पर रात के आख़िरी शो में हमने रीगल के सिंगल स्क्रीन सिनेमा में ‘दबंग’ फ़िल्म देखी। शो हाउसफुल था और क्या सीटियाँ बज रहीं थीं। सुबह इंदौर दूरदर्शन में हम लेखक-चित्रकार प्रभु जोशी के मेहमान थे। लोकप्रिय ऐंकर गायत्री शर्मा ने मेरा और स्वानंद का आधे-आधे घंटे का इंटरव्यू किया। असरदार शख़्सियत और बहुत मीठा बोलने वाली इस लड़की के हाथ में कोई काग़ज़ नहीं था मगर इसने बहुत जमकर हमारी ख़बर ली। यह भी अच्छा लगा कि गायत्री ने मेरे ही एक शेर से इंटरव्यू की शुरुआत की-



परवाज़ की तलब है अगर आसमान में
ख़्वाबों को साथ लीजिए अपनी उड़ान में


गायत्री ने मुझसे पूछा- शायरी में मुहब्बत की क्या भूमिका होती है
मैंने उन्हें क़तील शिफ़ाई का शेर सुना दिया-

कैसे न दूँ क़तील दुआ उसके हुस्न को
मैं जिसपे शेर कहकर सुख़नवर बना रहा

14 सितम्बर २०१० को प्रथम हिंदी पोर्टल वेब दुनिया के असिसटंट मैनेजर भीका शर्मा मुझे अपने कार्यालय ले गए। वहाँ कान्फेंस हाल में मैनेजर संदीप सिसोदिया के साथ मराठी फीचर इंचार्ज स्मिता जोशी, हिन्दी फीचर इंचार्ज स्मृति जोशी, उपसंपादक (खेल) शराफ़त ख़ान, उपसंपादक रूपाली बर्वे, और गुजराती फीचर इंचार्ज कल्याणी देशमुख के साथ जमकर साहित्य चर्चा हुई। इन लोगों के अनुरोध पर यहां भी मैंने ग़ज़लें सुनाईं। कुल मिला कर इंदौर-उज्जैन की यह यात्रा ज़िंदगी की किताब में एक सुनहरे अध्याय के रूप में दर्ज हो चुकी है।

आपका
देवमणिपांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड,
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210-82126

शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

अगर किसी पर दिल आ जाए : कथाकार महुआ मांझी

डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा, गायिका कविता सेठ, गीतकार स्वानंद किरकिरे, सम्पादक विश्वनाथ सचदेव,  डीआईजी पवन जैन, अभिनेत्री नेहा शरद, सम्पादक राजुलकर राज,  संस्थाध्यक्ष केशव राय और कवि उदघोषक देवमणि पाण्डेय
अगर किसी पर दिल आ जाए
शायरी के बारे में कहा जाता है- पसंद अपनी-अपनी। कभी-कभी जिस शेर को हम बहुत साधारण समझते हैं वह दूसरे इंसान को बहुत अच्छा लगता है। अगर शेर को पसंद करने वाला इंसान ख़ुद आपसे इज़हारे-ख़याल कर दे तो इससे बड़ा पुरस्कार क्या हो सकता है ! कुछ ऐसा ही पुरस्कार मुझे उस वक्त मिला जब मैंने कालिदास अकादमी (उज्जैन) के सभागार में रविवार 12 सितम्बर 2010 को आयोजित काव्यसंध्या में दो ग़ज़लें सुनाईं। कार्यक्रम की समाप्ति पर सबसे पहले समारोहाध्यक्ष विश्वनाथ सचदेव [सम्पादक नवनीत,मुंबई] ने बधाई दी- यार, तुम इतनी बढ़िया ग़ज़लें कहते हो यह मुझे आज पता चला। फिर डॉ.अन्जना संधीर [यूएसए] ने मुक्तकंठ से तारीफ़ की। सामने श्रोताओं में बैठे हुए वरिष्ठ कथाकार एस आर हरनोट [शिमला] सीधे मंच पर आ गए और हाथ मिलाकर मुबारकवाद दी। मंच से नीचे उतरते ही देखा-सामने हाथ में क़लम-काग़ज़ लिए चर्चित कथाकार डॉ.महुआ मांझी [रांची] मुस्करा रहीं थी।बोली- मेरे लिए मर जाने वाला शेर लिख दीजिए। मैंने उनकी नोटबुक में लिख दिया। वो शेर यूँ था-

अगर किसी पर दिल आ जाए इसमें दिल का दोष नहीं
अच्छा चेहरा देखके हम भी मर जाते हैं कभी

उल्लेखनीय है कि एस आर हरनोट और डॉ.महुआ मांझी दोनों बहुत अच्छे कथाकार माने जाते हैं और दोनों को बर्मिंघम पैलेस (लंदन) में अंतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान से नवाज़ा जा चुका है।फिलहाल आगे बढ़ने से पहले पूरी ग़ज़ल का लुत्फ़ उठाइए-

ख़्वाब सुहाने दिल को घायल कर जाते हैं कभी कभी
अश्कों से आँखों के प्याले भर जाते हैं कभी कभी

पल पल इनके साथ रहो तुम इन्हें अकेला मत छोड़ो
अपने साए से भी बच्चे डर जाते हैं कभी कभी

खेतों को चिड़ियां चुग जातीं बीते कल की बात हुई
अब तो मौसम भी फ़सलों को चर जाते हैं कभी कभी

आँख मूँदकर यहाँ किसी पर कभी भरोसा मत करना
यार-दोस्त भी सर पे तोहमत धर जाते हैं कभी कभी

मेरे शहर में मिल जाते हैं ऐसे भी कुछ दीवाने
रात-रात भर सड़कें नापें घर जाते हैं कभी कभी

दुनिया जिनके फ़न को अकसर अनदेखा कर देती है
वे ही इस दुनिया को रोशन कर जाते हैं कभी कभी

अगर किसी पर दिल आ जाए इसमें दिल का दोष नहीं
अच्छा चेहरा देखके हम भी मर जाते हैं कभी कभी

ना पीने की आदत हमको ना परहेज़ है पीने से
हम भी जाते हैं मयख़ाने पर जाते हैं कभी कभी

उज्जैन में विश्व हिंदी सेवा सम्मान

दिवस के उपलक्ष्य में 12 सितम्बर 2010 को कालिदास संस्कृत अकादमी (उज्जैन) में अंतर्राष्ट्रीय परिसंवाद और विश्व हिंदी सेवा सम्मान समारोह एवं काव्य संध्या का आयोजन हुआ। काव्य संध्या में डॉ.अन्जना संधीर [यूएसए], कवि विश्वनाथ सचदेव [मुंबई], गीतकार स्वानन्द किरकिरे [मुंबई] ,यशवंत सिंह [दिल्ली ], सुश्री नेहा शरद, [मुंबई], डॉ.शिव चौरसिया [मालवा], पवन जैन [इंदौर], शायर देवमणि पाण्डेय [मुंबई], डॉ.पिलकेन्द्र अरोरा आदि ने अपनी रचनाओं से का पाठ किया। ‘आल इज वेल’ फेम ‘स्वानंद किरकिरे का ‘बावरा मन’, मीठी आवाज, और सहज-सरल व्यक्तित्व बहुतों को भाया। वे लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बने रहे। । थ्री इडियट के इस गीतकार को दो दिन बाद ‘बहती है हवा’ गीत के लिए नेशनल अवार्ड घोषित हो गया। शरद जोशी की पुत्री व अभिनेत्री नेहा शरद ने स्व.शरद जोशी की याद ताजा़ करा दी। शरद जी की एक रचना का निराले अंदाज़ में पाठ कर उन्होंने बहुतों को अतीत की दुनिया में पहुंचा दिया। उज्जैन संभाग के डीआईजी पवन जैन ने भी काव्य संध्या में कविता पाठ किया। लोगों को यह अच्छा लगा कि पुलिस वाला होते हुए भी वे बेहद संवेदनशील, सरल व साहित्यिक व्यक्तित्व से लैस हैं। 

उज्जैन में पधारें हिन्दी सेवियों का एक समूह चित्र
 
इस मौके़ पर उत्कृष्ट हिंदी सेवा के लिए देश-विदेश के अनेक साहित्यकार,संस्कृतिकर्मी और हिंदीसेवियों को विश्व हिंदी सेवा सम्मान से विभूषित किया गया। यहाँ सम्मानित हुये लोगों में अपने पहले ही उपन्यास ‘मैं बोरिशाइल्ला’ से चर्चा में आयीं डॉ.महुआ मांझी [रांची], कथाकार एस आर हरनोट [शिमला], विदेश में हिन्दी की ध्वजा फहराने वाली लेखिका डॉ.अन्जना संधीर [यूएसए], वरिष्ठ साहित्यकार प्रो.नन्दलाल पाठक [मुंबई], नवनीत के सम्पादक विश्वनाथ सचदेव [मुंबई], फ़िल्म थ्री ईडियट के गीतकार स्वानंद किरकिरे [मुंबई], सिनेजगत की मशहूर गायिका कविता सेठ [मुंबई], कवि-उदघोषक देवमणि पाण्डेय [मुंबई], डॉ त्रिभुवननाथ शुक्ल [भोपाल], ऐतिहासिक उपन्यासकार डॉ.शरद पगारे [इंदौर],गीतकार चंद्रसेन विराट [इंदौर],वेब पत्रिका भड़ास फॉर मीडिया के सम्पादक यशवंत सिंह [दिल्ली],सम्पादक राजुलकर राज, समीक्षक डॉ.शैलेन्द्रकुमार शर्मा [उज्जैन], युवा पत्रकार सुबोध खंडेलवाल [इंदौर], समालोचक डॉ.करुणाशंकर उपाध्याय [मुंबई], हिंदी दैनिक नई दुनिया इंदौर की युवा पत्रकार गायत्री शर्मा, प्रथम हिंदी पोर्टल वेब दुनिया इंदौर के सहायक प्रबंधक भीका शर्मा, लेखक जवाहर कर्नावट [अहमदाबाद] आदि शामिल हैं।

अमेरिका की डा.अंजना संधीर ने अपने देश प्रेम व हिंदी प्रेम के जज्बे की ऐसी आत्मीय जानकारी दी कि उसे सुनकर हर एक शख़्सका दिल उनके प्रति सम्मान से भर उठा। डा.अंजना ने अमेरिका में हिंदी के लिए अपने संघर्ष की गाथा सुनाई और स्वीकार किया कि देश प्रेम का यह जज़्बा ही उन्हें दुबारा अमेरिका से भारत खींच लाया है और वे बच्चों सहित फिर से अहमदाबाद में रहने लगी हैं। डा.अंजना संधीर के बहुआयामी व्यक्तित्व की झलक इस आयोजन के जरिए मिली। बतौर टीचर, बतौर गायिका, बतौर कवयित्री, बतौर एक ह्यूमन बीइंग, बतौर महिला... वे हर मोर्चे पर श्रेष्ठ दिखीं। रांची से चलकर आईं युवा लेखिका डॉ.महुआ मांझी, और शिमला से पधारे कथाकार एस आर हरनोट ने बड़े असरदार ढंग से अपनी रचना यात्रा के बारे में जानकारी दी। जहाँ कम उम्र में ही उत्कृष्ट उपन्यास की रचना कर डॉ.महुआ मांझी न सिर्फ लोकप्रिय हुई हैं बल्कि लाखों लोगों की पसंदीदा लेखिका भी बन चुकी हैं वहीं पहाड़ी जीवन की अदभुत कथाएं लिखकर एस आर हरनोट ने कई पुरस्कार, सम्मान और प्रतिष्ठा अर्जित करके एक कीर्तिमान बनाया।

दोपहर में सभी अतिथियों ने उज्जैन शहर से करीब 15 किमी दूर विकलांग व बेसहारा लोगों के लिए बने आश्रम में जाकर पंगत में बैठकर भोजन किया और आश्रम की गतिविधियों के बारे में समाजसेवी सुधीर गोयल से जानकारी हासिल की। सभी ने सुधीर गोयल के प्रयासों की भूरि-भूरि प्रशंसा की और इसे अपनी उज्जैन यात्रा की विशिष्ट उपलब्धि के रूप में रेखांकित किया।

वक्ताओं ने मालवा रंगमंच समिति, उज्जैन के संस्थापक-अध्यक्ष केशव राय की इसलिए जमकर तारीफ की कि उन्होंने निजी प्रयासों से अंतरराष्ट्रीय स्तर का आयोजन किया और हिंदी क्षेत्र के प्रतिभाशाली लोगों को एक मंच पर बिठाकर बहुत कुछ रचने-कहने-जानने का मौका प्रदान किया। सरकारी फंड के जरिए हिंदी दिवस पर औपचारिकता पूरी करने वाले सरकारी विभागों व सरकारों को केशव राय से प्रेरणा लेनी चाहिए कि आखिर किस तरह एक व्यक्ति अपने दम पर एक सफल आयोजन कर हिंदी के उत्थान में अभूतपूर्व योगदान दे रहा है। अगले दिन श्री मध्यभारत हिंदी समिति, इंदौर में और प्रथम हिंदी पोर्टल वेब दुनिया के कार्यालय में हमारा सम्मान और कविता पाठ हुआ। 

आपका
देवमणिपांडेय
सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड,
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210-82126

शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

सजा है इक नया सपना : देवमणि पांडेय की ग़ज़ल


देवमणि पांडेय की ग़ज़ल  

सजा है इक नया सपना हमारे मन की आँखों में
कि जैसे भोर की किरनें किसी आँगन की आँखों में

शरारत है, अदा है और भोलेपन की ख़ुशबू है
कभी संजीदगी मत ढूँढिए बचपन की आँखों में

कहीं झूला, कहीं कजली, कहीं रिमझिम फुहारें हैं
खिले हैं रंग कितने देखिए सावन की आँखों में

जो इसके सामने आए सँवर जाता है वो इंसां
छुपा है कौन-सा जादू भला दरपन की आँखों में

सुलगती है कहीं कैसे कोई भीगी हुई लकड़ी
दिखाई देगा ये मंज़र किसी बिरहन की आँखों में

फ़क़ीरी है, अमीरी है, मुहब्बत है, इबादत है
नज़र आई है इक दुनिया मुझे जोगन की आँखों में

देवमणि पाण्डेय 1988 (छायाकार स्व.बादल) 


आपका
देवमणिपांडेय
सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड,
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210-82126