शनिवार, 31 दिसंबर 2011

किताबों की दुनिया : ख़ुशबू की लकीरें


 ख़ुशबू की लकीरें
किताबों की दुनिया में

 कवि नीरज गोस्वामी अपने ब्लॉग पर एक महत्वपूर्ण कॉलम सहेज रहे हैं जिसका नाम है- किताबों की दुनिया। इसमें उन्होंने मेरी किताब ख़ुशबू की लकीरें को शामिल करके मुझे जो इज़्ज़त बख़्शी है उसकेलिए मैं उनका शुक्रगुज़ार हूँ। लीजिए आप भी उनके लफ़्ज़ों का लुत्फ़ उठाइए।

मैंने देखा है, जरूरी नहीं के मैंने जो देखा है उस से आप भी सहमत हों, के खूबसूरत अशआर कहने वाले शायर अक्सर खूबसूरत नहीं होते. शायर का नाम आने पर हमारे ज़ेहन में एक दाढ़ी वाले अचकन टोपी पहने हुए शख्स का चेहरा उभरता है. हमें फिल्मों में और पत्र पत्रिकाओं में ऐसे ही चेहरे देखने की आदत पड़ चुकी है. बहुत हुआ तो सूट बूट में या फिर कमीज़ बुशर्ट में भी आजकल कभी कभार शायर मुशायरों में दिखाई दे जाते हैं.चलिए आप पहनावे को पहनावे को छोडिये और एक बात नोट कीजिये कि खुदा ने जिन्हें भी शायरी की सौगात दी है उनसे अच्छी शक्लो सूरत छीन ली है. लेकिन साहब अपवाद कहाँ नहीं होते. आज हम किताबों की दुनिया में एक ऐसे शायर की किताब की बात करेंगे जो देखने में भी उतना ही खूबसूरत है जितनी कि उसकी शायरी.

ये चाह कब है मुझे सब-का-सब जहान मिले
मुझे तो मेरी जमीं, मेरा आसमान मिले
जवां हैं ख़्वाब क़फ़स में भी जिन परिंदों के
मेरी दुआ है उन्हें फिर नयी उड़ान मिले
हो जिसमें प्यार की खुशबू, मिठास चाहत की
हमारे दौर को ऐसी भी इक जुबान मिले

प्यार की खुशबू और चाहत की मिठास से लबरेज़ इस खूबसूरत शायर का नाम है देवमणि पांडेय जिनकी किताब "खुशबू की लकीरें" का हम आज जिक्र करने जा रहे हैं. शायरी का शायद ही कोई ऐसा चाहने वाला होगा, खास तौर पर मुंबई में, जो देवमणि जी के नाम से वाकिफ़ न हो. मुंबई में होने वाली नशिश्तें, कविता और शायरी से सम्बंधित कार्यक्रम उनकी मौजूदगी के बिना अधूरे माने जाते हैं. अपने आकर्षक व्यक्तित्व और दिलकश अंदाज़ से वो हर महफ़िल में जान डाल देते हैं.

क्या कहें कुछ इस तरह अपना मुकद्दर हो गया
सर को चादर से ढका तो पाँव बाहर हो गया

जब तलक दुःख मेरा दुःख था, एक क़तरा ही रहा
मिल गया दुनिया के ग़म से तो समंदर हो गया

इस कदर बदलाव आया आदमी में इन दिनों
कल तलक जो आइना था आज पत्थर हो गया

Poet Devmani Pandey

दिल के आँगन में उगेगा ख़्वाब का सब्ज़ा जरूर
 
शर्त है आँखों में अपनी कुछ नमी बाकी रहे

हमेशा मुस्कुराते, खुश मिजाज़ देवमणि जी से मेरी पहली मुलाकात मुंबई की बतरस काव्य संस्था द्वारा अनीता कुमार जी के घर पर आयोजित काव्य संध्या में लगभग पांच वर्ष पहले हुई थी. उसके बाद उनसे मिलने मिलाने का सिलसिला चल निकला. खोपोली के भूषण गार्डन में हुई पहली काव्य संध्या भी उनकी रहनुमाई में ही आयोजित की गयी थी.

आदमी पूरा हुआ तो देवता बन जाएगा
ये जरूरी है कि उसमें कुछ कमी बाकी रहे

दिल में मेरे पल रही है ये तमन्ना आज भी
इक समंदर पी चुकूं और तिश्नगी बाकी रहे

4 जून 1958 को सुल्तानपुर (यू.पी.) में जन्में देवमणि जी ने हिंदी एवं संस्कृत में प्रथम श्रेणी में एम.ए. किया है और अब आयकर भवन,चर्चगेट (मुंबई) में कार्यरत हैं. उनकी अब तक दो किताबें दिल की बातें -1999 और खुशबू की लकीरें-2005 प्रकाशित हो चुकी हैं. इसके अलावा दूरदर्शन और आकाशवाणी से भी उनकी रचनाएँ प्रसारित हुई हैं. हिंदी के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में भी उनकी रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं. उन्हें फिल्म पिंजर के लिए लिखे गीत "चरखा चलती माँ..." को सन 2003 का “सर्वोत्तम गीत” पुरस्कार मिल चुका है.

कितने दिलों में आज भी जिंदा हैं कुछ रिवाज़
पक्के घरों के बीच में अंगनाईयां मिलीं

हर शै में जैसे आज भी खुशबू है प्यार की
छू कर किसी को झूमती पुरवाइयाँ मिलीं

पलकों ने जब सजाया है कोई हसीन ख़्वाब
वादी में दिल की गूंजती शहनाईयां मिलीं
  
"खुशबू की लकीरें" किताब में देवमणि जी की न केवल तीस के लगभग ग़ज़लें हैं बल्कि इतने ही गीत और नगमें भी हैं. गीत ग़ज़लों के रसिक पाठकों के लिए ये किताब खास तौर से पठनीय है. इस किताब से आप देवमणि जी के बहु आयामी लेखन की एक झलक पा सकते हैं. आज के जीवन की आपाधापी, हर्ष-विषाद, मिलन-विछोह, ठोकर-पुचकार ,राग-विराग, सफलता-असफलता, आशा-अवसाद, उतार-चढाव जैसे सभी रंग इस किताब की रचनाओं में मिलते हैं.

ईद, दशहरा, दीवाली का रंग है फीका फीका सा
त्योंहारों में इक दूजे को गले लगाना भूल गए

बचपन में हम जिन गलियों की धूल को चंदन कहते थे
बड़े हुए तो उन गलियों में आना जाना भूल गए

शहर में आ कर हमको इतनी खुशियों के सामान मिले
घर-आँगन, पीपल-पगडण्डी,गाँव सुहाना भूल गए

मेधा बुक्स, एक्स -11, नवीन शाहदरा, दिल्ली द्वारा प्रकाशित इस किताब को 011-2232 3672 पर फोन करके इसकी प्राप्ति का रास्ता पूछा जा सकता है अथवा श्री देवमणि जी को इन खूबसूरत अशआरों के लिए उनके मोबाइल + 91 98210 82126 पर बधाई देते हुए उनसे इस किताब के लिए आग्रह किया जा सकता है. दोनों में से कोई सा भी रास्ता चुनने को आप स्वतंत्र हैं. मेरी आपसे बस इतनी सी प्राथना है के इन खूबसूरत अशआरों के लिए देवमणि जी को कम से कम बधाई जरूर दें

दुःख और ग़म के बीच ज़िंदगी कितनी प्यारी लगती है
जैसे कोई फूल खिला हो काँटों की निगरानी में

दुनिया जिसको दिन कहती है तुम कहते हो रात उसे
कुछ सच की गुंजाइश रख्खो अपनी साफ़ बयानी में

खुदगर्ज़ी और चालाकी में डूब गयी है ये दुनिया
वर्ना सार ज्ञान छुपा है बच्चों की नादानी में

छीन लिया दुनिया ने सबकुछ फिर भी माला माल रहा
जब-जब मुझको हँसते देखा, लोग पड़े हैरानी में

सार्थक अपने नाना देवमणि पांडेय के साथ
लोग उन्हें हँसते देख भले ही हैरानी में न पड़ते हों लेकिन पचास के ऊपर की उम्र में भी उनके चेहरे की ताजगी और मासूमियत ज़रूर लोगों को हैरानी में डाल देती है. पचास क्या वो चालीस के भी नहीं लगते. एक बार उनकी इस सदा बहार जवानी का रहस्य मेरे पूछने पर उन्होंने हँसते हुए जवाब दिया "बहुत सीधा जवाब है नीरज भाई ! न हम किसी को टेंशन देते हैं और न किसी बात का टेंशन लेते हैं, जो है जैसा है हर हाल में खुश रहते हैं बस." बात यकीनन बहुत सरल और सीधी है लेकिन हम में से अधिकाँश इसका पालन नहीं करते. दूसरों के सुख से उपजा दुःख और नकारात्मक सोच हमें समय से पहले ही बूढा कर देती है.

जब तलक रतजगा नहीं चलता
इश्क क्या है पता नहीं चलता

ख़्वाब की रहगुज़र पे आ जाओ
प्यार में फासला नहीं चलता

उस तरफ चलके तुम कभी देखो
जिस तरफ रास्ता नहीं चलता

आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि देवमणि जी का अपना एक ब्लॉग भी "खुशबू की लकीरें" नाम से है.जिसमें वो अपनी ताज़ा रचनाएँ और साहित्य से सम्बंधित लेख पोस्ट करते रहते हैं. साहित्य प्रेमियों को उनके ब्लॉग पर जरूर जाना चाहिए. चलते चलते देवमणि जी की ग़ज़ल के चंद शेर और पढ़िए:-

अभी तक ये भरम टूटा नहीं है
समंदर साथ देगा तश्नगी का

न जाने कब छुड़ा ले हाथ अपना
भरोसा क्या करें इस ज़िन्दगी का

लबों से मुस्कराहट छिन गयी है
ये है अंजाम अपनी सादगी का


36 comments:

वन्दना said... वाह नीरज जी…………देवमणि जी से मिलवाने के लिये हार्दिक आभार्…………ज़ब की सोच है और गज़ब का चिन्तन्…………हर शेर मे उभर कर आया है।

Vijai Mathur said... हार्दिक शुभकामनायें पांडे जी और आप दोनों को।
singhSDM said...देवमणि जी से ये मुलाक़ात आपही करवा सकते थे.... सुल्तानपुर के हैं, जानकर अच्छा लगा.गज़ब के शेर लिखे है हज़रत ने... सारे एक से बढ़ कर. बहुत खूब !

Navin C. Chaturvedi said...नीरज भाई आज मैं अपने क्रम को निभा नहीं पाऊंगा| क्यूँ निभाऊं? भाई इन से तो क़रीब-क़रीब रोज ही बात जो होती रहती है| वाक़ई देव भाई के बारे में आप ने सही लिखा बड़े ही हसमुख व्यक्ति हैं| मैं उन को तब से जानता हूँ, जब ये मीरा रोड में रहा करते थे| एक अच्छे मित्र हैं और मार्गदर्शक भी| ईश्वर उन्हें और अधिक ऊंची बुलदियों पर पहुंचाएं |

रश्मि प्रभा... said... devmani ji se milker, padhker bahut achha laga

सदा said...आपकी कलम से देवमणी जी को पढ़ने का अवसर मिला ...आभार इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये ।

दीपक बाबा said... लो फिर मैंने दायेरी निकाली और कुछ नगीने आपके खाजाने से चुन कर नोट कर लिए......... बरसों के लिए... क्योंकि 'हीरा' है बरसों के लिए.

मनोज कुमार said... लाजवाब। बहुत अच्छी प्रस्तुति।

रेखा said... देवमणीजी को पढ़ने का अवसर देने के लिए धन्यवाद

डॉ टी एस दराल said...सुन्दर मुलाकात . बस नाना जल्दी बन गए .

kshama said... Padhtee to hamesha hun...bina camment ke nikal jatee hun...aaj raha nahee gaya! Wah! ye kitab to hathiyani hee hogee!

मान जाऊंगा..... ज़िद न करो said... बहुत ताजापन है शेरों में... देवमणि जी से परिचय करवाने का शुक्रिया... देवणणि जी को ढेरों शुभकामनाएं....-आकर्षण

तिलक राज कपूर said... देवमणि भाई की ग़ज़लें तो पढ़ने को मिलती रहती हैं, इतना विस्‍तृत परिचय आज पहली बार मिला। साथ में खूबसूरत शख्सियत की बोनस रूपी कुछ खूबसूरत ग़ज़लें भी। आनंद आ गया।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) said... आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी की गई है यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

S.N SHUKLA said... very nice post. thanks

डॉ. मनोज मिश्र said... देवमणी जी से परिचित करने के लिए धन्यवाद, बहुत अच्छी प्रस्तुति.

प्रवीण पाण्डेय said... खुशबू की लकीरें महका गयीं।

रचना दीक्षित said... सुंदर मुलाक़ात. पांडे जी और आपका आभार सुंदर प्रस्तुति के लिए.

vidhya said... लाजवाब। बहुत अच्छी प्रस्तुति।

pran sharma said... devmani pandey achchhe kavi to hain hee , achchhe gadyakar bhee hain . main hamesha unkee lekhni kaa mureed rahaa hoon .

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said... मैं इस बात से बिलकुल सहमत नहीं कि अच्छी शायरी करने वाले ख़ूबसूरत नहीं होते.. नीरज गोस्वामी जी को ही देख लीजिए.. माशा अल्लाह कमाल के खूबसूरत इंसान हैं.. और ढूंढ लाते हैं उतने ही ख़ूबसूरत शायर हमारे लिए.. देवमणी जी का परिचय और उनकी शायरी दोनों अप्रतिम हैं..

इमरान अंसारी said... वैसे तो सभी शेर अच्छे हैं ,दिल जीत लिया........जितनी शानदार देव जी की शायरी है उतना ही शानदार उनका व्यक्तित्व भी है|

anu said... आपकी कलम से देवमणी जी को पढ़ने का अवसर मिला ...आभार इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये ।

Kunwar Kusumesh said... देवमणि जी और उनकी कृति से परिचय अच्छा लगा.उनके अशआर भी अच्छे हैं.

Udan Tashtari said... देवमणी जी के तो हम फैन हैं...आपके मार्फत इस बेहतरीन किताब का जायजा भी मिल गया...आभार.

veerubhai said.नीरज जी गोस्वामी आपकी सहृदयता के कायल हुए ,आप में औरों को आगे करके उनके पीछे पीछे अनुगामी बन चलने थिरकने फुदकने की क्षमता है औरों की उपलब्धियों पर नाचने की भी .ब्लॉग जगत में आपकी शख्शियत अलग है .हम घर घुस्सू थे ,बस लिखते रहते थे एक दिन में पांच पांच पोस्ट फिर किसी ने बताया दूसरों के भी घर जाया करो अब ब्लॉग ब्लॉग जातें हैं याद आता है आप पहले भी कई मर्तबा आये थे ,हमें पता नहीं था यहाँ एक के बदले एक चलता है ,बल्कि दो के बदले एक यानी आप दो बार टिपियाओ तब कोई एक मर्तबा आने का उपक्रम करेगा .बेलाग लिखा है .जो भी लिखा है .अपनी धुन में रहता हूँ ,मैं भी तेरे जैसा हूँ .कृपया यहाँ भी पधारें -http://veerubhai1947.blogspot.com/और यहाँ भी -http://sb.samwaad.com/ शुक्रिया ,ज़नाब का .

abhi said... हर शेर लाजवाब है!!!

!अक्षय-मन!!, said... waah jaise ye khushboo ki lakirain na ho mere hirdya ki shirayen ho andar tak basi bahut bahut shukriya aapka

Mrs. Asha Joglekar said... आपने झोली में ऐसे ऐसे नायाब हीरे छुपा रखे हैं हर बार मन की आँखें चुंधिया जाती हैं । वैसे तो आपके चुने हुए सारे के सारे शेर लाजवाब हैं पर ये तो छू गया दिल को ।

Shiv said... इससे पहले भी देवमणि जी की रचनाएं आपके ब्लॉग पर पह चुका हूँ. इस बार किताब से खूब कोट किया है आपने. एक से बढ़कर एक गज़लें. वाह!

Babli said... देवमणि जी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा! उनसे परिचय करवाने के लिए धन्यवाद! बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल! लाजवाब प्रस्तुती!

हरकीरत ' हीर' said... सबसे पहले ५७ पुस्तकों की समीक्षा के लिए आपको बधाई ....देवमणि जी से ब्लॉग से ही परिचित हुई ...गज़ब का लिखते हैं ....लिखते क्या हैं सीधे दिल में उतारते हैं .....सुभानाल्लाह ...हमने तो न नोट कर लिया है ...आपकी पोस्ट का हवाला दे बधाई भी भेज दी है .....

जयकृष्ण राय तुषार saidभाई नीरज जी पहला शेर ही दिल में उतर गया | पांडे जी और आप दोनों को बधाई |

S.N SHUKLA said... मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .एस .एन. शुक्ल

दिगम्बर नासवा said... देव मणि जी और उनकी किताब से परिचय करवाने का शुक्रिया नीरज जी ... इन शेरों के तेवर बता रहे हैं की किताब क्या होगी ... आप हर बार कोई नगीना छांट कर लाते हैं बहुत बुत शुक्रिया ...

देवमणि पाण्डेय said... आप शायरी के क़द्रदानों ने यहाँ जो कमेंट दिए हैं उसे पढ़कर मेरा हौसला बहुत बढ़ गया है। आप सबका बहुत बहुत शुक्रिया.
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